Nirjala Ekadashi 2024: ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून को सुबह 4:42 बजे से शुरू होकर 18 जून को सुबह 6:23 बजे तक रहेगी। इसलिए, उदया तिथि के कारण निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून, यानी आज के दिन है। इस व्रत को सूर्योदय से सूर्यास्त तक बिना अन्न और जल के रखा जाता है। द्वादशी तिथि 19 जून को सुबह 7:29 बजे तक रहेगी, इसलिए एकादशी व्रत का पारण 19 जून को किया जाएगा।
निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का धार्मिक महत्त्व ही नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए होता है। इस दिन श्रद्धा और क्षमता के अनुसार दान देना चाहिए। खासकर, इस दिन विधिपूर्वक जल का कलश दान करने से पूरे साल की सभी एकादशियों का फल मिलता है। जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। हर साल चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तो यह संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।
Table of Contents
Nirjala Ekadashi
निर्जला एकादशी | |
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आधिकारिक नाम | निर्जला एकादशी व्रत |
अनुयायी | हिन्दू, भारतीय, भारतीय प्रवासी |
प्रकार | Hindu |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
तिथि | मलमास की शुक्ल एकादशी |
Nirjala Ekadashi की कथाएँ
कथा 1 | कथा 2 |
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया, तो महाबली भीम ने निवेदन किया, “पितामह! आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी बिना भोजन के नहीं रह सकता। मेरे पेट में ‘वृक’ नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे बहुत ज्यादा और कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या मैं अपनी इस भूख की वजह से एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?” पितामह ने भीम की समस्या का समाधान करते हुए कहा, “नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो खूबी है कि वह सबको धारण करता है और सबके लिए उपयुक्त व्रत-नियमों की सरल और लचीली व्यवस्था भी प्रदान करता है। आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करें और आपको पूरे साल की सभी एकादशियों का फल मिलेगा। निःसंदेह, आप इस लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष भी प्राप्त करेंगे।” इतने आश्वासन पर भीमसेन भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए तैयार हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। निर्जला व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करें, “हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत कर रहा हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, कृपया मेरी सब पापों का नाश करें।” इस दिन जो व्यक्ति निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करता है, उसे विशेष पुण्य प्राप्त होता है। | एक बार महर्षि व्यास पांडवों के घर आए। भीम ने उनसे कहा, “भगवान! युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत रखते हैं और मुझसे भी कहते हैं कि मैं व्रत रखूं। लेकिन मैं बिना खाए रह नहीं सकता, इसलिए मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जिसे करने में मुझे खास परेशानी न हो और सभी एकादशियों का फल भी मिल जाए।” महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के पेट में ‘वृक’ नाम की अग्नि है, जिससे अधिक खाना खाने पर भी उसकी भूख शांत नहीं होती। महर्षि ने कहा, “तुम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत में स्नान, आचमन के लिए पानी पीने से दोष नहीं लगता और इससे अन्य तेईस एकादशियों का पुण्य भी मिलता है। तुम जीवनभर इस व्रत का पालन करो।” भीम ने साहस के साथ निर्जला एकादशी का व्रत किया, लेकिन व्रत के दौरान वह बेहोश हो गया। पांडवों ने गंगाजल, तुलसी चरणामृत और प्रसाद देकर उनकी मूर्छा दूर की। इसलिए इस एकादशी को ‘भीमसेन एकादशी’ भी कहते हैं। |
Nirjala Ekadashi Ke Vidhi Vidhaan (विधि विधान)
निर्जला एकादशी के नियमों का विवरण
निर्जला एकादशी एक पवित्र व्रत है जो पूरी तरह से भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण है। इस व्रत को करने से सभी एकादशियों का लाभ मिलता है। इस खास दिन पर भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस व्रत की विधि और नियमों को सरल भाषा में बताया गया है।
- प्रातःकाल जगह लेना: निर्जला एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान करें। स्नान करने के बाद शुद्ध कपड़े पहनकर भगवान विष्णु का स्मरण करें।
- सोच: स्नान करने के बाद व्रत करने का विचार करें। भगवान विष्णु के सामने हाथ जोड़कर घोषणा करें कि आप निर्जला एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से करेंगे।
- पूजा को तैयार करना: पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें। पूजा के लिए फल, पंचामृत, धूप, दीप, फूल और प्रसाद तैयार करें।
- पूजा का तरीका: गंगाजल से भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र को स्नान करें। फिर उन्हें कपड़े दें और फूलों से सजाएं। भगवान को धूप-दीप जलाकर आरती करें और भोग लगाएं।
- भजन-कीर्तन: पूरे दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। इससे मन शांत होता है और भक्ति भावना आती है।
- पानी और खाद्य पदार्थों का त्याग: इस व्रत में अन्न और जल दोनों त्याग किए जाते हैं। अगर आप जल नहीं त्याग सकते तो फलाहार कर सकते हैं, लेकिन पूरी कोशिश करें कि निर्जला व्रत ही रखें।
- ध्यान और समग्र ध्यान: दिनभर भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप और ध्यान करें। विशेष रूप से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप बहुत फायदेमंद होता है।
- रात को जागरण: रात्रि को जागकर भगवान की कहानियाँ सुनें। यह व्रत का पुण्य बढ़ाता है।
- पारण, या व्रत छोड़ देना: द्वादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में व्रत करें। भगवान विष्णु को भोग लगाने के बाद प्रसाद लें। इसके बाद गरीब लोगों को खाना और दान दें।
Nirjala Ekadashi इतिहास
एक बार, भोजन प्रिय भीमसेन ने महर्षि व्यास से सुना कि हर एकादशी पर बिना खाए रहने का नियम है। भीम ने विनम्रता से कहा, “महाराज! मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता। मुझे पूरे दिन भूख लगती रहती है। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मुझे भी पुण्य मिल सके।”
महर्षि व्यास ने कहा, “अगर तुमसे सालभर की सभी एकादशी का व्रत नहीं हो सकता, तो सिर्फ एक निर्जला एकादशी कर लो। इससे तुम्हें पूरे साल की एकादशियों का फल मिल जाएगा।”
भीम ने ऐसा ही किया और स्वर्ग को प्राप्त हुए। इसलिए इस एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
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निर्जला एकादशी के पवित्र नियम
- पवित्रीकरण और जल आचमन: पवित्रीकरण के समय जल आचमन करें और इसके बाद अगले दिन सूर्योदय तक पानी न पीएं। यह आत्मशुद्धि का एक पवित्र उपाय है।
- मौन व्रत: दिनभर कम बोलने का प्रयास करें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें। यह मन की शांति और आत्मचिंतन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- जागरण: दिनभर न सोएं। जागरण करें और भगवान के भजन-कीर्तन में लीन रहें। इससे व्रत का पुण्य और भी बढ़ जाता है।
- ब्रह्मचर्य का पालन: इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें। यह संयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है।
- सदाचार: झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद से दूर रहें। यह व्रत सच्चाई और शांति की ओर एक कदम है।
निर्जला एकादशी का व्रत कठिन हो सकता है, लेकिन इसकी महिमा और फल अद्वितीय हैं। इसे पूरे मन और श्रद्धा से करें और अपने जीवन को पुण्य और शांति से भरपूर बनाएं।